यहाँ के किले और महलों में ज़्यादा सजावट देखने को नहीं मिलती। यहाँ के सबसे प्रतापी शासक ’कानददेव सोनगरा’ हुए हैं। जिन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के कई बार दांत खट्टे किए। खिलजी ने कानददेव से बदला लेने के लिए कई दाँव-पेंच लगाए, परन्तु अन्त में वह कानददेव और उनके पुत्र वीरमदेव की वीरता का कायल हो गया। शहर का मुख्य आकर्षण जालौर का किला है। यह वास्तुकला का एक प्रभावशाली प्रतीक है और माना जाता है कि 8वीं और 10वीं शताब्दियों के बीच इसका निर्माण किया गया था। किला लगभग 336 मीटर की ऊँचाई पर खड़ी पहाड़ी के ऊपर स्थित है और नीचे शहर का अति सुदर दृश्य पेश करता है। किले की मुख्य विशेषताएं इसकी ऊँची दीवारें और गढ़ हैं। किले के चार बड़े द्वार हैं लेकिन दो मील की लंबी घुमावदार चढ़ाई के बाद केवल एक तरफ से जाने का मार्ग है।